June 27, 2025

उदयमान सूर्य भगवान भास्कर को अर्घ देकर किया विधिविधान से हवन पूजन कर छठ पूजा का समापन, दीपदान कर व्रतियों ने खोला व्रत

मयंक शर्मा- जशपुर नगर ब्यूरो चीफ!
कोतबा:- धर्मनगरी कोतबा में आस्था और संस्कार के महापर्व छठ के अंतिम दिन गुरुवार को व्रतियों ने ब्रह्ममुहूर्त पर उदयमान सूर्य भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर विधिविधान से हवन पूजन के साथ समापन किया गया ।

गुरुवार को सुबह भैरवी नदी के तट सतिघाट धाम व हाईस्कूल स्थित असुरबन्ध तालाब के पानी में उतर कर दर्जनों व्रती महिलाओं ने भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया और संतान के कल्याण के लिए मुरादे मांगी वही छठी मैया से परिवार की सुख समृद्धि की कामना की। अर्घ्य देने के बाद छठी मैया के लिए बनाई गई ठेकुआ और प्रसाद लोगों में बांटा गया। छठ पूजा महोत्सव के चौथे दिन तड़के हवन किया गया। इसके बाद भगवान सूर्य और छठी मैया की आरती की गई। 4 दिनों तक चलने वाला यह व्रत 9 नवंबर को नहाए खाए के साथ शुरू हुआ था इस दौरान लोग भक्ति भाव में डूबे नजर आए और नदी तालाब घाट के किनारे आस्था का सैलाब देखने को मिला। इससे पहले बुधवार को नदी में उतरकर अस्त हो रहे सूर्य को दूध और जल से अर्घ्य दिया गया। इस दौरान घाटों पर नए वस्त्र धारण कर पूजन करने लोग पहुंचे थे।

छठ का व्रत काफी मुश्किल होता है इसलिए इसे महाव्रत भी कहा जाता है।इस दौरान छठी देवी की पूजा की जाती है छठी देवी सूर्य की बहन है लेकिन छठ व्रत कथा के अनुसार छठ देवी ईश्वर की पुत्री देवसेना बताई गई हैं। इस दौरान घाटों पर प्रशासन की तरफ से खास इंतजाम भी किए गए। महिलाओं के साथ उनके पति बच्चे भी घाटों पर नजर आए। इसलिए यहां त्यौहार की खास खूब देखने को मिली। इस महापर्व पर ग्रामीण क्षेत्रों में इच्छा महा छठ पर्व के अवसर पर नाते रिश्तेदारों के साथ लोग घाटों पर पहुंचे। वहीं सतिघाट व असुरबन्ध तालाब के तट पर श्रद्धालुओं की आस्था उमड़ी। लोग भोर से ही हाथों पर उगते हुए सूर्य की आराधना के साथ गाय के दूध के साथ अर्द्ध दिया। और हवन पूजन के साथ समापन किया गया। इस दौरान छठ पूजा में अल्प सुबह होने से लाइट व अलाव इत्यादि की व्यवस्था कर रखी थी। वहीं सुरक्षा दृष्टि के के मद्देनजर कोतबा पुलिस चौकी प्रभारी जयसिंह मिर्रे अपने दल बल के साथ तैनाती कर मुश्तैद नजर आए।

नहाय खाय से होती है शुरुआत

जैसा कि छठ पूजा मंगलवार को नहाय खाय के बाद शुरू हुई थी। आखिर के दोनों दिन में नदी, तालाब या किसी जल स्रोत में कमर तक पानी में जाकर श्रद्धालु सूर्य को अर्घ्य देते हैं। व्रत से पहले आत्मिक शुद्धता के लिए नहाय-खाय का आयोजन होता है। छठ में पहले दिन षष्ठी को डूबते हुए सूर्य और सप्तमी को उगते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। इस दिन व्रती महिलाओं ने स्नान पूजन कर कद्दू चावल के बने प्रसाद को ग्रहण किया। इस त्यौहार की धूम हर वर्ष की भाँति कोतबा के लोगों ने बड़ी संख्या में घाटों के किनारे सूर्य को अर्घ दिया और मन्नतें मांगी। तीसरे दिन शाम को डूबते सूरज को अर्ध्य देकर महिलाओं ने अपना व्रत तोड़ा। चौथे दिन सुबह महिलाओं और पुरूषों ने नदी किनारे बैठकर छठी मैय्या के गीतों का गुणगान किया और उनकी पूजा-अर्चना की। इनके अलावा आज घरों में ठेकुवा, खस्ता, पुवा आदि भी तैयार किया जाता है, जो छठ की पारंपरिक पकवानों में से एक होते हैं। पूजा-पाठ के बाद प्रसाद को लोगों में बांटा जाता है। माना जाता है कि प्रसाद खाने से सारी मनोकामना पूरी हो जाती है।

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