एक और आंदोलन के सामने झुकी बीजेपी,चुनावों के मद्देनजर लिया एक और फैसला वापस





देवस्थानम बोर्ड को भंग करने का लिया फैसला
सन 2022 में उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड राज्य में चुनाव होने वाले हैं दोनों ही स्थानों पर भारतीय जनता पार्टी की सरकार है चुनाव के मद्देनजर भाजपा नीत केंद्र सरकार ने किसानों के विरोध को देखते हुए जहां तीन कृषि कानूनों को वापस लिया है वहीं उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने भी पुरोहितों के विरोध के सामने झुकते हुए देवस्थानम बोर्ड को भंग करने का फैसला कर लिया है ज्ञात हो कि केदारनाथ धाम में आई प्राकृतिक आपदा से जब केदारनाथ पूरी तरह से तबाह हो गया था उस समय केंद्र की मनमोहन सरकार ने 7500 करोड़ रुपए का विशेष पैकेज घोषित किया था जिससे तत्कालिक सत्तारूढ़ राज्य सरकार ने कार्य चालू कर लिया था

2017 में उत्तराखंड में भाजपा की सरकार बनने के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ धाम को प्राथमिकता देते हुए केदारनाथ धाम को अत्यंत भव्य तथा दिव्य रूप देने का निर्णय किया और कार्य प्रारंभ किया गया जिसके बाद देवस्थानम बोर्ड बनाने की कवायद शुरू हो गई थी! दिसंबर 2019 में विधानसभा में पारित होने के बाद आखिर 14 जनवरी 2020 मकर सक्रांति के दिन उत्तराखंड के राज्यपाल से भी देवस्थानम बोर्ड को स्वीकृति मिल गई इस बोर्ड के अंतर्गत केदारनाथ बद्री धाम सहित चार धाम तथा गंगोत्री यमुनोत्री सहित 51 मंदिरों का प्रबंधन उत्तराखंड सरकार ने अपने हाथ में ले लिया जिससे वहां के पुरोहितों में काफी नाराजगी नजर आने लगी लेकिन जब 24 फरवरी सन 2020 को देवस्थानम बोर्ड के सीईओ की नियुक्ति हुई तो उसी दिन से पुरोहितों ने विरोध प्रारंभ कर दिया राज्य में मुख्यमंत्री बदलने के बाद मुख्यमंत्री बने पुष्कर धामी ने पुरोहितों से बुलाकर चर्चा भी की जिसमें 30 अक्टूबर 2021 तक मामले को निपटाना करने की बात हुई थी

परंतु मामले को ढलता देखकर पुरोहितों ने विरोध तेज कर दिया यहां तक कि मुख्यमंत्री को केदारनाथ धाम जाने से भी रोक दिया था विपक्षी राजनीतिक दल कांग्रेस तथा आम आदमी पार्टी इस मुद्दे को भुनाकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने में लगी हुई थी आखिरकार पुरोहितों का विरोध देखते हुए भाजपा को अपना कदम वापस लेते हुए देवस्थानम बोर्ड को भंग करने का फैसला करना पड़ा अब इस फैसले का फायदा किसको और क्या मिलता है या तो भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है परंतु अपने फैसलों से पीछे ना हट ने वाली भाजपा की जो छवि थी वह केंद्र तथा राज्य सरकारों के लगातार ये दो फैसले वापस लेने के बाद बदल रही है
